Dev Diwali 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास (Kartik Month) की पूर्णिमा तिथि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ मानी जाती है। यही वह दिन है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसके उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप जलाकर उनकी स्तुति की थी। इसी कारण यह पर्व “देव दिवाली” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस वर्ष यह पावन अवसर 5 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। कहा जाता है कि इस दिन दीप प्रज्वलन से अंधकार पर प्रकाश और अज्ञान पर ज्ञान की विजय होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दान और दीपदान (Deepdan) का अत्यंत महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं कि इस दिन कितने दीप जलाना शुभ माना गया है और किस मुहूर्त में दीपदान करना चाहिए…
कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली का पौराणिक महत्व/Dev Diwali 2025
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Month) को देवताओं का दीपोत्सव (Festival of Lights) कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की थी। इस उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप जलाकर प्रसन्नता व्यक्त की थी, तभी से यह दिन “देव दिवाली” के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान, व्रत और दीपदान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दीपक की रोशनी को न केवल धार्मिक प्रतीक बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत भी माना गया है। कहा गया है—“दीपो भव” अर्थात् जो दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाए वही सच्चा साधक है।

कितने दीप जलाना है शुभ
शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) पर दीपों की संख्या हमेशा विषम रखनी चाहिए — जैसे 11, 21, 51 या 108 दीपक। विषम संख्या को शुभ और ऊर्जावान माना गया है, क्योंकि यह सकारात्मक कंपन फैलाती है। जो व्यक्ति इस दिन 108 दीपक जलाता है, उसे पूरे वर्ष देव कृपा प्राप्त होती है। वहीं 365 बातियों वाला दीपक जलाना पूरे वर्ष के मंगल फल की प्राप्ति का प्रतीक बताया गया है। कहा जाता है कि जितने दीप जलाए जाते हैं, उतनी ही आत्मिक शांति और समृद्धि घर में प्रवेश करती है। दीपदान केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि यह अपने भीतर के अंधकार को दूर करने का प्रतीक भी है।
दीपदान का शुभ समय और स्थान
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) और देव दिवाली (Dev Diwali) के दिन दीप जलाने का सर्वोत्तम समय प्रदोष काल माना गया है। इस वर्ष यह काल शाम 5:30 बजे से 7:30 बजे तक रहेगा। इसी समय भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना के साथ दीपक जलाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि दीप जलाना चाहिए — घर के मंदिर में, मुख्य द्वार पर, तुलसी माता के पास, पीपल के वृक्ष के नीचे और यदि संभव हो तो पवित्र नदी तट या गंगा जल में प्रवाहित करना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
आध्यात्मिक संदेश और निष्कर्ष
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और आंतरिक जागरण का प्रतीक दिन है। इस दिन जब संपूर्ण धरती दीपों से जगमगाती है, तब मनुष्य को अपने भीतर भी ज्ञान का दीप प्रज्वलित करना चाहिए। सच्चा दीपदान वही है जो आत्मा को आलोकित कर दे। जब आप इस देव दिवाली पर दीप जलाएं, तो न केवल घर को रोशन करें बल्कि अपने भीतर के अंधकार — क्रोध, ईर्ष्या, और अज्ञान को भी मिटाने का संकल्प लें। यही इस पर्व का वास्तविक संदेश है— अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और अज्ञान से ज्ञान की ओर यात्रा करना।










