Dont Offer Tulsi To Lord Ganesh: हिंदू धर्म में प्रत्येक परंपरा और अनुष्ठान के पीछे एक गहरा धार्मिक रहस्य और पौराणिक कथा छिपी होती है। तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का पर्व नजदीक आते ही एक सवाल फिर से चर्चा में है— गणेश जी (Ganesh Ji) की पूजा में तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती? जहां तुलसी को पवित्रता, भक्ति और देवी स्वरूप माना गया है, वहीं भगवान गणेश की पूजा में इसका निषेध क्यों है, यह सवाल हमेशा लोगों के मन में रहता है। इस रहस्य के पीछे एक रोचक कथा छिपी है जो प्रेम, क्रोध और क्षमा— तीनों भावनाओं का प्रतीक है। आइए जानते हैं पूरी पौराणिक कथा क्या है…
तुलसी माता का गणेश जी के प्रति प्रेम/Dont Offer Tulsi To Lord Ganesh
पौराणिक मान्यता के अनुसार, तुलसी माता भगवान गणेश (Tulsi Mata And Ganesh Bhagwan) के प्रति गहरा प्रेम रखती थीं। वे उनसे विवाह करना चाहती थीं और एक दिन उन्होंने बड़ी श्रद्धा और विनम्रता से गणेश जी के सामने अपने मन की बात रख दी। लेकिन गणेश जी ने उनके इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। यह अस्वीकार तुलसी माता के लिए अत्यंत दुखद और अपमानजनक था। उन्हें यह लगा कि उनकी भक्ति और सच्चे भावों का कोई मूल्य नहीं रहा। इस अस्वीकृति ने उनके मन में पीड़ा और क्रोध दोनों जगा दिए, जिससे आगे इस कथा की दिशा ही बदल गई।

गणेश जी को मिला तुलसी माता का श्राप
अपमानित महसूस कर तुलसी माता (Tulsi Mata) क्रोध में आ गईं और उन्होंने गणेश जी (Lord Ganesh) को श्राप दे दिया कि उनकी दो शादियां होंगी। गणेश जी ने इस श्राप को सुनकर कुछ समय मौन साधा, किंतु बाद में यह श्राप सत्य सिद्ध हुआ। भगवान गणेश का विवाह रिद्धि और सिद्धि, दो दिव्य शक्तियों से हुआ — जो समृद्धि और बुद्धि की प्रतीक हैं। यह प्रसंग इस बात को दर्शाता है कि जब कोई भावनाएं अतिरेक में आ जाएं, तो वे ईश्वरीय व्यवस्था को भी प्रभावित कर सकती हैं। तुलसी माता का यह श्राप गणेश जी के जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय बन गया।
गणेश जी का प्रत्युत्तर और तुलसी का भाग्य
गणेश जी ने भी तुलसी माता (Mata Tulsi) के श्राप के उत्तर में उन्हें श्राप दिया कि उनका विवाह एक राक्षस से होगा। परिणामस्वरूप, तुलसी का विवाह असुर जालंधर (Jalandhar) से हुआ। लेकिन कालांतर में तुलसी माता को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी और पुनः भक्ति मार्ग पर लौट आईं। गणेश जी ने उनकी क्षमा स्वीकार की और उन्हें वरदान दिया कि वे एक पवित्र पौधे के रूप में प्रतिष्ठित होंगी, जिसकी पूजा प्रत्येक शुभ कार्य में की जाएगी। यही पौधा आज तुलसी के नाम से पूजित है।
क्यों नहीं चढ़ाई जाती तुलसी गणेश जी को
क्षमा देने के बाद भी गणेश जी ने यह स्पष्ट कहा कि उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा। यही कारण है कि आज तक गणेश जी की आराधना में तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता। यह परंपरा उस पौराणिक प्रसंग की याद दिलाती है, जब भावनाओं के टकराव ने भक्ति को भी एक नई दिशा दी थी। इस कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि प्रेम, क्रोध और क्षमा — ये तीनों ही जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन अंततः क्षमा और करुणा ही ईश्वरत्व का मार्ग बनती हैं।










