Kartik Purnima : रायबरेली में आज भी पुरानी परंपरा का प्रचलन है जिसको लेकर यहां कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के लिए ग्रामीण बैलगाड़िया आकर्षण का केंद्र बनी है।यहां बैलगाड़ियों पर सवार होकर श्रद्धालुओ का हुजूम स्नान के लिए रवाना दिखाई दिया डलमऊ के गंगा घाट पर कार्तिक स्नान के लिए बैलगाड़ियों से जाने की है।
रायबरेली की सड़कों पर कार्तिक पूर्णिमा के दौरान एक ऐसा मनमोहक नज़ारा देखने को मिलता है, जो आधुनिकता के इस दौर में भी हमारी पारंपरिक जड़ों की याद दिलाता है। जहाँ आज के समय में ऑडी, मर्सडीज़ और डिफेंडर जैसी लक्ज़री गाड़ियाँ आकर्षण का केंद्र हैं, वहीं रायबरेली में गंगा स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का बैलगाड़ियों का कारवाँ लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है।
घंटियों की मधुर गूँज

कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर रायबरेली मुख्यतः डलमऊ गंगा घाट की सड़कें दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं की बैलगाड़ियों से पट जाती हैं। बैलों के गले में बंधी घंटियों की मधुर और लयबद्ध आवाज़ पूरे इलाके में गूँजती है, जो कानों में किसी शास्त्रीय संगीत-सा अहसास कराती है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जीवंत है, जहाँ लोग मोटर गाड़ियों की लंबी कतारों के बावजूद, सपरिवार बैलगाड़ी से गंगा स्नान करने को अपनी संस्कृति और आस्था का अटूट हिस्सा मानते हैं।
स्नानार्थी शेषपाल बताते हैं कि वे फुरसतगंज से कई सालों से अपने परिवार के साथ लाडिया (बैलगाड़ी) लेकर गंगा स्नान करने जाते रहे हैं। यह परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है, जिसके लिए वे चार दिन पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। वे दो दिन घाट पर रुककर स्नान करते हैं और फिर वापसी करते हैं।
एक अन्य स्नानार्थी, अखिलेश यादव, जो नहर कोठी फुरसतगंज से आए हैं, बताते हैं कि वे पिछले 15 सालों से लगातार डलमऊ गंगा स्नान करने जा रहे हैं। उनका पूरा परिवार बहुत पहले से ही इस यात्रा पर आता रहा है। वे कहते हैं,पहले बहुत बैलगाड़ियां जाती थीं, अब कुछ कमी आई है,” पर फिर भी इस पारंपरिक यात्रा का धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक उल्लास आज भी बरकरार है।
यह नज़ारा दर्शाता है कि भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ में भी, भारत के गाँवों में परंपरा, आस्था और सादगी का अटूट बंधन आज भी कायम है। यह बैलगाड़ी यात्रा सिर्फ एक सफर नहीं, बल्कि भारतीय ग्रामीण संस्कृति और पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे विश्वास की एक अनमोल विरासत है।










