झारखंडी आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा रांची के मोरहाबादी स्थित अभिनन्दन बैंकवेट में संयुक्त प्रेस वार्ता का आयोजन किया। जहां आदिवासी नेताओं ने कहा कि समस्त आदिवासी संगठन यह स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि कुड़मी/कुर्मी महतो समाज को अनुसूचित जनजाति (ST) की मान्यता किसी भी स्थिति में नहीं दी जानी चाहिए। यह न केवल संविधान के विरुद्ध है, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान, परंपरा और अधिकारों पर सीधा हमला है।
मनोज उराँव ने कहा कि, “यदि कुड़मी/कुर्मी समाज स्वयं को आदिवासी मानता है, तो उन्हें यह प्रार्थना करनी चाहिए कि अगले जन्म में किसी आदिवासी माँ की कोख से जन्म लें।” आशुतोष सिंह चेरो (पालामू प्रमंडल प्रभारी, आदिवासी छात्र संघ) ने कहा कि कुड़मी/कुर्मी महतो समाज, आदिवासी समाज के बीच आराजकता फैलाकर ST दर्जा प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है। इनका सामाजिक ढाँचा, परंपरा, भाषा और रीति-रिवाज आदिवासी समुदाय से पूर्णतः भिन्न है। इसलिए इन्हें आदिवासी समाज में शामिल नहीं किया जा सकता।


एडवोकेट देवी दयाल मुंडा ने कहा कि कुड़मी/कुर्मी समाज के कुछ तथाकथित नेता आदिवासी दर्जे की जो माँग कर रहे हैं, वह संविधान के विरुद्ध है। यह समाज के बीच फूट डालने का प्रयास है। हम आग्रह करते हैं कि सभी समुदाय मिलकर सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखें और किसी भी प्रकार की टकराव की स्थिति से बचें। हमें संयम बरतते हुए समाज को एक नई दिशा देनी है। विवेक तिर्की (DSPMU, राँची कॉलेज अध्यक्ष, आदिवासी छात्र संघ) ने कहा कि, “हम कुड़मी/कुर्मी महतो समाज को ST आरक्षण में शामिल नहीं होने देंगे। इनके कुछ नेता अधूरी जानकारी के आधार पर आदिवासी इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, जो झारखंड की स्थिति को मणिपुर जैसा बना सकती है। यह आदिवासी छात्र संघ को किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। हम प्रशासन से अनुरोध करते हैं कि राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए इन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाए।”
नयन गोपाल सिंह मुंडा ने आरोप लगाया कि कुड़मी/कुर्मी महतो समाज रघुनाथ महतो के इतिहास और योगदान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहा है, जो ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है। प्रेस वार्ता में झारखंडी आदिवासी बचाव संघर्ष समिति, आदिवासी छात्र संघ, आदिवासी मूलवासी मंच तथा अन्य सभी प्रमुख आदिवासी संगठनों ने भाग लिया और एक स्वर में कुड़मी/कुर्मी समाज को आदिवासी का दर्जा दिए जाने का विरोध किया।