विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति के तत्वावधान में झारखंड आंदोलन के जनक एवं पढ़ो और लड़ों का नारा देने वाले झारखंड के एक महान विभूति बिनोद बिहारी महतो का जयंती समारोह करगली स्थित बिनोद बिहारी महतो फुटबॉल ग्राउंड में धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान लोगों ने उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। मौके़ पर पूर्व विधायक योगेश्वर महतो बाटुल ने कहा कि झारखंड निर्माण में बिनोद बिहारी महतो के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। समिति के अध्यक्ष लखनलाल महतो ने अपने संबोधन में कहा कि 60 के दशक में बिनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज का गठन कर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया। लोगों को शिक्षित करने के लिए सुदूर ग्रामीण इलाकों में उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थान खोले। इनके नाम से स्थापित शिक्षण संस्थानों में हजारों बच्चे पढ़ रहे हैं। सीसीएल बीएंडके महाप्रबंधक ने श्रद्धासुमन अर्पित करते कहा कि बिनोद बिहारी महतो के बारे में जो कुछ सुना, उससे महसूस हुआ कि वे एक महान जननेता थे, उनके आदर्शों को आत्मसात करना चाहिए। अपने स्वागत भाषण में समिति के महासचिव काशीनाथ केवट ने कहा कि बिनोद बिहारी महत चहुंमुखी प्रतिभा के धनी थे, समाज में फैली अनेकों कुरीतियों और अन्धविश्वासों के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत करने का श्रेय इन्हे ही जाता है। उन्होंने कहा कि बिनोद बिहारी महतो झारखंड आंदोलन के जनक व अग्रदूत थे। कार्यकारी अध्यक्ष बिनोद महतो ने कहा कि बिनोद बिहारी महतो ने समाज में शिक्षा की अलख जगाई। पढ़ो और लड़ो का नारा देने के साथ सामाजिक कुरीतियों के अलावा महाजनी शोषण का भी तीव्र विरोध कर बिनोद बिहारी ने जनता को गोलबंद कर आंदोलन चलाया। शोषित, पीड़ित ,वंचित, समुदाय की आवाज बुलंद किया. कार्यकारी अध्यक्ष काशीनाथ सिंह ने कहा कि चार फरवरी 1973 को अलग झारखंड राज्य निर्माण के लिए दिशोम गुरु शिबू सोरेन, प्रसिद्ध मजदूर नेता एके राय, शिवा महतो आदि के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था। वर्षों अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन कर इसे मुकाम तक पहुंचाया।
पत्रकार राकेश वर्मा ने कहा कि बिनोद बिहारी महतो राजनीति में आने के बाद पहली बार 1980 को टुंडी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। इसके बाद सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से 1985 में विधायक बने। 1991 के मध्यावधि आम चुनाव में गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। 18 दिसंबर 1991 को दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के दौरान हृदय गति रुक जाने से बिनोद बिहारी महतो का निधन हो गया। बहरहाल उनके विचारों और आंदोलनों को आगे बढ़ाना ही उनकी जयंती कार्यक्रम की सार्थकता होगी। श्यामल सरकार, मधुसूदन सिंह, सीएस झा आदि नेताओं ने उनकी जीवनी पर प्रकाश डालते हुआ कहा कि धनबाद जिले के सुदूर बलियापुर बड़ादाहा गांव में जन्मे शिक्षाविद् बिनोद बिहारी महतो पढ़ो और लड़ो का नारा देकर अमर हो गए। चार फरवरी 1973 को अलग झारखंड राज्य निर्माण के लिए दिशोम गुरु शिबू सोरेन, प्रसिद्ध मजदूर नेता एके राय, शिवा महतो आदि के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया। वर्षों अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन कर इसे मुकाम तक पहुंचाया। इन आंदोलनों के प्रतिफल वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य की घोषणा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता काशीनाथ सिंह और बिनोद महतो ने किया तथा संचालन धनेश्वर महतो ने किया। मौके़ पर बेरमो प्रमुख गिरिजा देवी, देवीदास, दशरथ महतो, संतोष महतो, रविन्द्र मिश्रा, बिजय भोई, जवाहर लाल यादव, जगरनाथ राम, लालमोहन यादव, बबीता देवी, राजेश गुप्ता, चंदन राम, प्रदीप यादव, लालमोहन महतो, अर्चना देवी, मो जहाँगीर, विरेन्द्र, राजन आदि ने संबोधित किया।