रिपोर्ट : नासिफ खान
भारत में विकास के नाम पर विनाश आ रहा है। खेती की जमीन छीनकर कार पार्किंग बन रही है, पेड़ों को काटकर हम पौधे लगा रहे हैं। यह सब चलता रहा तो जीवन जीना भी मुश्किल हो जाएगा। ख्यात समाजसेविका मेधा पाटकर ने अमर उजाला से विशेष बातचीत में कई मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने नर्मदा बचाव आंदोलन, मप्र में गेल इंडिया प्रोजेक्ट, इंदौर में मिलों की हरियाली खत्म करने पर सरकारों को चेताया। पीएम मोदी का जन्मदिन विनाश बनकर आया. मेधा पाटकर ने कहा कि (नर्मदा आंदोलन) में हमने बहुत कुछ खोया है। पहाड़पट्टी के 20 हजार लोगों को जमीन मिली और 50 हजार का पुनर्वास हुआ। इन सबके बावजूद हजारों लोगों को आज भी अनुदान नहीं मिला। पिछले साल हजारों परिवारों के घर ध्वस्त हुए। नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध) के आसपास के 16 हजार परिवारों को भूअर्जन से बाहर कर दिया था, उन्हें कहीं पर शिफ्ट नहीं किया गया। सरकार ने कहा कि वे डूब क्षेत्र से बाहर हैं, उनके घर नहीं डूबेंगे। पिछले साल उनके घर भी डूब गए। पिछले साल पीएम नरेद्र मोदी के जन्मदिन पर बाढ़ आई। पीएम का जन्मदिन होने की वजह से सरदार सरोवर डेम के गेट नहीं खोले गए। इससे भरूच, अंकलेश्वर और बड़ौदा के हजारों घर डूब गए। 6 ग्रामीण और 1200 मवेशी मारे गए। सैकड़ों तीर्थ स्थल ध्वस्त हो गए। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस डेम की लागत चार हजार 200 करोड़ थी वह 90 हजार करोड़ रुपए कैसे पहुंच गई। बाद में सरकार ने सरदार सरोवर का स्टैच्यू आफ यूनिटी और वहां के पर्यटन की लागत भी उसी प्रोजेक्ट में शामिल कर ली। सरकारें नियम कानून कुछ नहीं मानती। मेधा पाटकर ने कहा कि कानून के मुताबिक खेती की जमीन गैर खेती के लिए नहीं दे सकते हैं। 70 प्रतिशत लोगों की मंजूरी चाहिए किसी भी योजना के लिए। यदि भूमि का अधिग्रहण होता है तो भी सिविल गाइडलाइन के दो गुना से चार गुना कीमत देना होगी। ग्राम सभा के बिना कोई योजना आगे नहीं बढ़ेगी। इन सब कानूनों को सरकारें नहीं मान रही हैं। आज राजनीतिक दृष्टिकोण से योजनाएं देखी जाती हैं, विकास के दृष्टिकोण से नहीं देखी जाती। इसीलिए विकास में सिर्फ विनाश ही होता है। अमेरिका ने हजारों बांध बंद किए, हम नए बना रहे। मेधा पाटकर ने कहा कि आज अमेरिका ने उनके देश के 1,951 बांध निरस्त कर दिए हैं। वहां पर नदियों को बचाया जा रहा है। यूरोप में 4 हजार बांध निरस्त कर दिए गए हैं। नदियों को अविरल ही बहने देना चाहिए। नदियां नहीं रहेंगी तो जीवन समाप्त हो जाएगा।
इंदौर में 51 लाख पौधे लगाकर पेड़ काट रही सरकार
मेधा पाटकर ने कहा कि इंदौर में सरकार 51 लाख पौधे लगाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है दूसरी तरफ हजारों प्राचीन पेड़ काटे जा रहे हैं। दोनों की तुलना नहीं हो सकती। देश में बक्सवाहा का जंगल, हंसदेव अरण्य, सतपुड़ा का जंगल बचाना है। प्राकृतिक रूप से बने हुए जंगलों को समाप्त करके नए जंगल नहीं बनाए जा सकते। एयर एक्ट, वाटर एक्ट, पर्यावरण प्रोटेक्शन एक्ट जैसे कड़े कानून हैं लेकिन किसी का भी पालन नहीं हो रहा है।
खेती की जमीन छीनकर हम विनाश कर रहे
मेधा पाटकर ने कहा कि मप्र के साथ ही देशभर में खेती की जमीन छीनने का प्रयास हो रहा है। किसानों के लिए खेती आज घाटे का सौदा है लेकिन फिर भी उनके पास रोजगार का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। वह इसमें जैसे तैसे खुश हैं और अपना जीवन चला रहे हैं। दुनिया भोजन के संकट से जूझ रही है और अन्न सुरक्षा यदि देश को चाहिए तो खेती को बचाना ही होगा। कारें तेजी से बढ़ रही हैं, हर जगह हम हाईवे बना रहे हैं। हादसे बढ़ रहे हैं, हजारों लोगों की जान जा रही है। खेती की जमीनें हाईवे के लिए ली जा रही हैं। हम अपने देश की खेती खत्म करने पर तुले हुए हैं। विकास के नाम पर यह सिर्फ विनाश है।