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दिल्ली की सत्ता तय करती हैं ये 12 आरक्षित सीटें

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए अब बहुत ही ज्यादा बेताब हैं. साथ ही, आम आदमी पार्टी भी लगातार चौथी बार सत्ता अपने पक्ष में करने के लिए जोर लगा रही है. ऐसे में तीनों ही महत्व पूर्ण राजनीतिक दल जातीय समीकरण सेट करने में लगे हुए हैं, हलकी सभी पार्टी की निगाहें सत्ता को सुरक्षित करने वाली दिल्ली कि आरक्षित सीटों पर है. दिल्ली में 12 विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए  आरक्षित हैं. अगर  बात करे तो पिछले तीन दशक के चुनावी वोटिंग पैटर्न को देखें तो साफ है कि आरक्षित सीटों का झुकाव एक तरह का ही रहता है.

अगर दिल्ली में राज करना है,तो इन 12 महत्व पूर्ण विधानसभा की सीट को अपनी ओर झुकाना पड़ेगा। तब ही आप दिल्ली में राज कर सकते हैं। अन्यथा, इंतजार फिर से करना पड़ेगा। ये बात सभी राजनीतिक दलों को पता है। यही वजह है कि सभी दल अपनी एडी चोटी का जोर लगा रहे है।

चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे सियासी पारा है होता जा रहा है चुनावी समीकरण भी रोचक बनता जा रहा है. कांग्रेस और बीजेपी दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है साथ दोनों राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए काफी आतुर नजर आ रही है।दूसरी तरफ केजरीवाल जीत का चौका लगा कर एक बार फिर  सत्ता अपने नाम करने की जत्तोजहत लगा रही है. ऐसे में तीनों महत्वपूर्ण राजनीतिक दल अपनी-अपनी सियासी और जातीय समीकरण अपने नाम  करने में जुटी है, लेकिन सभी की निगाहें सत्ता को सुरक्षित करने वाली महत्वपूर्ण 12 आरक्षित सीटों पर है।

क्या हैं, ये इतिहास इन सीटो का?

70 विधानसभा वाली दिल्ली में अनुसूचित जाति के लिए 12 आरक्षित विधानसभा सीटें हैं. आप को बताते चले कि सन्  1993 से लेकर 2020 तक दिल्ली में सत्ता हासिल करने का रास्ता, दिल्ली कि आरक्षित सीटों से ही, निकला है. इन 12 सीटों पर जिस भी दल को विजय मिलती है, वो दल दिल्ली में सरकार बनाने में सफल रहा है. राजधानी के तीन दशक के चुनावी वोटिंग पैटर्न को देखें तो यह साफ है कि आरक्षित सीटों का वोटिंग ट्रेंड एक तरह का रहता है. इन सीटों का जनादेश कभी भी बिखरता हुआ नजर नहीं आता है और एक दल को ज्यादातर सीटें मिलती हैं. इसके चलते ये 12 आरक्षित सीटे ही सत्ता की दशा और दिशा तय करती है।

कौन सी हैं ये 12 तकदीर की विधानसभा सीट

दिल्ली विधानसभा में कुल 70 में से 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई थी. जिनमें मादीपुर, मंगोलपुरी, सीमापूरी, बवाना, त्रिलोकपुरी, कोडली, सुल्तानपुर माजरा, गोकुलपुर, पटेल नगर, अंबेडकर नगर, देवली और करोलबाग विधानसभा सीट शामिल है. इन 12 सीटों पर दलित समाज से ही विधायक चुने जाते रहे हैं, क्योंकि इन सीटों आरक्षित (दलित समाज ) को ही चुनाव लड़ने की इजाजत है. भले ही ये सीटें एक दर्जन ही हैं, लेकिन ये सभी सीट दिल्ली की सत्ता की दिशा और दशा को तय करने सीट है. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पर तभी काब्जा जमाने में कामयाब रही हैं, जब–जब उन्होंने आरक्षित सीट अपने नाम किया है।

केजरीवाल का गढ़ है ये 12 सीटे

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता पर तीन बार अपने नाम कर चुकी है. साल 2013, 2015 और 2020 में भी आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन से निकलकर सियासी पिच पर साल 2013 में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला लिया था. साल 2013 में  आम आदमी पार्टी को दिल्ली के चुनावी मैदान में उतर कर 70 में से 28 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल हुई थी. दिल्ली की सुरक्षित 12 सीटों में से 9 सीटों पर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया था हालांकि बीजेपी 2 सीटें ही जीत पाई  थी कांग्रेस को 1 ही सीट मिली थी. फिर केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी. केजरीवाल की जीत में दलित समाज का अहम रोल था. दो बार क्लीन स्विप कर चुके है केजरीवाल।

साल 2015 और 2020 के आम विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सभी 12 की 12 आरक्षित सीटें में कामयाबी का झंडा गड़ा था। वहीं कांग्रेस और बीजेपी को  12 में से एक भी दलित (आरक्षित)सीट पर जीत नहीं मिली सकी. आम आदमी पार्टी ने आरक्षित सीट पर क्लीन स्वीप कर दिल्ली की सत्ता को दूसरी बार अपने नाम किया था. आप को 2015 में 73 सीट पर जीत मिली थी तो 2020 में 62 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. इस तरह केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को अपनि ओर मोड कर सत्ता में फिर से काबिज हो गए थे।

2025 में क्या रहा आरक्षित सीट का?

दिल्ली में  एक दर्जन विधानसभा सीट हैं ,जो कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं,हलकी दलित समाज का प्रभाव सिर्फ इन्हीं सीटों तक सीमित नहीं है बल्कि अन्य सीट पर भी इनका प्रभाव देखने को मिलता है। आप को बता दे कि दिल्ली में दलित मतदाता 17%फीसदी से 45 फीसदी तक हैं. इनमें से अनुसूचित जाति के लिए  12 आरक्षित सीटें भी शामिल हैं. चाहे बीजेपी हो,या कांग्रेस पिछले दो चुनावों में इन 12 में से एक भी सीट अपने नाम नहीं कर पाईं.हलकी इस बार बीजेपी ने झुग्गियों और अनधिकृत कॉलोनियों में दलित कार्यकर्ताओं की मदद से व्यापक संपर्क अभियान चलाया जा रहा है.

बीजेपी का मकसद दलित मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में है वहीं कांग्रेस भी अपनी नजर दलित वोटों पर लगाए हुए है. बीजेपी तो दलित समुदाय के विश्वास को जीतने के लिए किसी भी प्रकार का मौका नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस भी सामाजिक न्याय का नारा को हवा दे रही है, साथ ही दलित आरक्षित सीटों पर अपना जीत कर झंडा गड़ना चाहती है. वहीं, केजरीवाल कि आम आदमी पार्टी भी पिछले दो विधानसभा चुनावों में मिली जीत को बरकरार रखते हुए सत्ता पर काबिज रहना चाहेगी, जिसके लिए केजरीवाल दलित समाज का दिल जीतने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं. इसी कड़ी में अमित शाह के द्वारा  पिछले दिनों डॉ. आंबेडकर के लिए गए कथित टिप्पणी को अपमान सिद्ध करने में कोई कार नहीं छोड़ रही है। इस बात को काफी हवा भी दिया जा रहा है, दोनों पार्टियों के द्वारा  बीजेपी पर कटाक्ष कर रहे हैं। दिल्ली के पूर्व मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी को दलित विरोधी कठघरे में खड़ी करने की कोशिश की है. अब तो यह आने वाली 8 फरवरी को ही निश्चित होगा कि परला किस तरफ झुकता है क्या केजरीवाल फिर से सरकार बना पाएंगे या फिर बीजेपी और कांग्रेस दो का सत्ता रूपी वनवास खत्म कर पाए गई की नहीं।

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