बुंदेलखंड की आत्मा माने जाने वाले लोक कलाकार पद्मश्री राम सहाय पांडे का 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे और निजी अस्पताल में इलाजरत थे। मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उनके निधन पर गहरा शोक जताते हुए कहा कि “बुंदेलखंड के गौरव, लोकनृत्य राई को वैश्विक पहचान दिलाने वाले लोक कलाकार पद्मश्री राम सहाय पांडे जी का निधन मध्यप्रदेश और कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका सम्पूर्ण जीवन लोककला और संस्कृति को समर्पित रहा, जो हमें सदैव प्रेरित करता रहेगा।” मुख्यमंत्री ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति और शोकाकुल परिवार को यह गहन दुःख सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना की है।
11 मार्च 1933 को सागर जिले के मड़धर पाठा गांव में जन्मे राम सहाय पांडे का जीवन एक आम किसान परिवार से शुरू हुआ था। उनके पिता लालजू पांडे किसान थे। महज 14 साल की उम्र में एक मेले में पहली बार उन्होंने राई नृत्य देखा, और वहीं से उनका जीवन बदल गया। एक अदृश्य खिंचाव था उस लोकनृत्य में, जिसने उन्हें अपनी ओर खींच लिया। उसी दिन उन्होंने ठान लिया कि वे राई को सिर्फ नृत्य नहीं, एक गौरव बनाएंगे। आने वाले दशकों में उन्होंने अपना पूरा जीवन राई नृत्य की सेवा में लगा दिया। न पैसे की चिंता, न शोहरत की चाह बस एक सपना कि बुंदेलखंड की राई पूरी दुनिया जाने।
राम सहाय पांडे ने अपने नृत्य के माध्यम से राई को लोकनृत्य से आगे एक सांस्कृतिक आंदोलन बना दिया। उन्होंने भारत सहित अमेरिका, जर्मनी, जापान और कई अन्य देशों में राई नृत्य की प्रस्तुतियाँ दीं। उनके प्रयासों से इस लोकनृत्य को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वो पहचान मिली जो कभी सपना था। लोककला को वैश्विक पहचान दिलाने की उनकी मेहनत को भारत सरकार ने भी स्वीकारा और साल 2022 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। ये सम्मान केवल एक कलाकार का नहीं, बल्कि पूरी बुंदेलखंड की मिट्टी का सम्मान था।