गिरिडीह के वर्तमान सांसद के फिर जीत की डगर दिख रही है मुश्किल
बेरमो : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन तीसरी बार देश की सत्ता में आने की कवायद में जुटा हुआ है। यह गठबंधन अबकी बार 400 पर का नारा देकर एक-एक सीट पर जीत हार का आंकलन कर रहा है और फूंक फूंक कर कदम रख रहा है ताकि किसी भी हाल में तीसरी बार उसे सत्ता हासिल हो सके। पर जहां एनडीए गठबंधन का यह हाल है वहीं गिरिडीह लोकसभा सीट को लेकर रस्साकस्सी जारी है। 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सीटिंग “सांसद” रवींद्र कुमार पांडेय का टिकट काटकर इस सीट को आजसू को थमा दिया था और आजसू के चंद्र प्रकाश चौधरी ने जीत भी दर्ज की थी,पर इस बार इस सीट को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। कहिए कि एक अनार सौ बीमार की हालत बन गई है. इस बार भी आजसू के चंद्र प्रकाश चौधरी ही इस सीट से चुनाव लड़ेंगे या आजसू किसी और को मैदान में उतारेगी यह अभी तय नहीं है,पर इस सीट को लेकर जिस तरीके से दावेदारी की जाने लगी है इस बार कठिन होगी डगर पनघट की वैसे भी कहा जाता है कि गिरिडीह संसदीय सीट से एकमात्र रवींद्र कुमार पांडेय को छोड़कर आज तक किसी ने लगातार दोबारा जीत दर्ज नहीं की है। रवींद्र कुमार पांडेय ही ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिन्हें इस सीट से पांच बार चुनाव जीत कर लोकसभा में जाने और जनता की आवाज बनने का अवसर मिला था।
कुल मिलाकर गिरिडीह सीट को लेकर जो हालात है वह विद्रोह की स्थिति पैदा कर सकती है। गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र का इतिहास रहा है कि 1952 से लेकर अब तक लगातार दूसरी बार किसी को जीत मिली है तो वह रवींद्र कुमार पांडेय ही है। उनकी साख, उनकी रणनीति,लोक प्रियता,उनकी पहचान और उनकी कार्य शैली लोगों का दिल जीतती रही है। कोरोना कल में जब लोगों की सेवा की जरूरत थी,रवींद्र कुमार पांडेय ने हर क्षेत्र में राहत पहुंचाई और सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अभी यह तय नहीं हैं, कि इस बार भी एनडीए की अनदेखी के बाद वह अपनी राजनीतिक अनदेखी पर चुप बैठे रहेंगे या कोई कदम उठाएंगे लेकिन जिस तरीके से गिरिडीह संसदीय सीट को लेकर हालात बनते जा रहे है। एनडीए की झोली में इस सीट का आना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल भरा जरूर है। इस सीट पर पिछली बार जनता को जो विकास का माडल दिखाया गया था,वैसा नहीं होने से निराशा छंटी नहीं है। अब देखने लायक बात होगी कि भाजपा और एनडीए गठबंधन अबकी बार जिस 400 पार की बात कर रहा हैं, उसमें गिरिडीह का योगदान हो पाता है या नही।