दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के आम चुनाव को लेकर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से लेकर बीजेपी और कांग्रेस पार्टी सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टी सत्ता को हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, पर इस बार राजधानी दिल्ली में एकतरफा मुकाबला देखने को नहीं मिल रहा है. साथ ही न किसी पार्टी के पक्ष में कोई हवा है. साल 2025 के आम चुनाव में अगर कुछ ही वोटर्स किसी एक पार्टी से दूसरे पार्टी की ओर झुक गए तो हतो फिर सारा सियासी गेम ही बदल जाएगा. इसीलिए कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी पूरी ताकत लगाए हुए हैं. की किसी भी प्रकार की गलती की कोई गुंजाइश नहीं है. एक गलती के कारण सत्ता हाथ से जा सकती है।
भारत की राजधानी दिल्ली मैं अपना वर्चस्व जमाने के लिए तीनों प्रमुख पार्टी अपना दम कम दिख रही है. जैसे-जैसे वोटिंग की तारीख नजदीक आ रही है. वैसे-वैसे सियासी लड़ाई रोचक बनती जा रही. हम आपको बताते चलें कि इस बार का यह चुनाव एकतरफा मुकाबला देखने को नहीं मिल रहा है और न ही किसी एक पार्टी की कोई हवा है. इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक-एक सीट पर चुनावी फाइट काफी दिलचस्प दिख रही है, जिसके चलते चुनाव दिलचस्प बनता जा रहा है.
सभी पार्टी दिख रही है अपना दम
अगर बात करें दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी सत्ता पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है तो वहीं बीजेपी इस बार 27 साल के वनवास को तोड़ने की फिराक में है. साथ ही कांग्रेस भी अपना जोर लगा करके दिल्ली चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है. इस बार का यह विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 के चुनाव से काफी अलग दिख रहा है. दिल्ली का यह चुनाव करीबी मुकाबले की तरफ बढ़ता जा रहा है. यानी चुनावी फाइट अगर टाइट होती है तो फिर राजधानी का सियासी रूपरेखा ही बदल जाएगी।
2020 विधानसभा चुनाव में थी कांटे की टक्कर
दिल्ली की डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा विधानसभा सीटों पर 2020 में जीत-हार का अंतर बहुत करीबी था. यही वह, सीटें पिछले चुनाव में केजरीवाल की सरकार बनाने में निर्णायक साबित हुई थी. 2020 के चुनाव में कांटे की टक्कर वाली सीटों में से आम आदमी पार्टी ने 13 सीट अपने नाम की थी और बीजेपी ने चार सीटें जीती थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों ने इन सीटों में से कई सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए हैं. अगर पिछले तीन विधानसभा चुनाव के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो कम अंतर वाली सीटें किसी की उम्मीद जगा रही हैं तो किसी की टेंशन बढ़ा रही हैं. यही कारण है कि यहां की तीनों प्रमुख पार्टी अपना जोर लगा रही है।
क्या कुछ कहता है पिछले तीन विधानसभा का परिणाम
अभी से पांच साल पहले 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने इतिहास रचते हुए। 70 में से 62 सीट पर जीत हासिल की थी, पर उनमें से 17 सीट ऐसी थी, जिन में हार-जीत का अंतर दस हजार से कम वोटों का रहा था. अगर वोट फीसदी देखते हैं तो 13 सीटों पर हार और जीत का अंतर 5 फीसदी से कम ही था, जिसमें से 10 आम आदमी पार्टी और 3 सीटें बीजेपी के हिस्से में आई थी. 2015 के विधानसभा में 6 सीटों पर 5 फीसदी से कम का अंतर रहा था जबकि 2013 में 27 सीटें थी.
अगर बात करें पांच से दस फीसदी के अंतर से जीतने वाली सीटों की । तो 2013 में 20 ऐसी सीटें थी, जिसमें 13 आप और,7 बीजेपी तथा 1सीट कांग्रेस को भी मिली थी. 2015 में 7 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें 6 AAP और एक बीजेपी जीती थी. 2020 में 8 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें से 6 सीटें आम आदमी पार्टी और दो सीटें बीजेपी जीती थी. 10 से 15 फीसदी के बीच जीत-हार वाली सीटें देखें तो 2013 में 10, 2015 में 4 और 2020 में सीटें जीती थी. इस तरह 15 फीसदी से कम अंतर से 2020 में 38 सीटों पर हार जीत हुई थी, जिसमें 31 सीट AAP और 7 सीटें बीजेपी ने जीती थी.
2020 मैं देखने को मिली थी कांटे की टक्कर
अगर देखा जाए तो दिल्ली के 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जिन 8 सीटों पर जीत मुकम्मल हुई थी, उन 4 सीट पर जीत और हार का अंतर बहुत कम था. ये सीटें थीं ,विश्वास नगर ,करावल नगर, गांधी नगर और बदरपुर सीट, जहां पर बीजेपी ने इस बार अपने प्रत्याशी को बदल दिया है. बीजेपी ने इन सीटों पर अपने नए चेहरे उतारे हैं. करावल नगर से विधायक मोहन सिंह बिष्ट को मुस्तफाबाद भेज दिया गया है और उनकी जगह कपिल मिश्रा पर बीजेपी ने दाव खेला है. गांधी नगर सीट से मौजूदा विधायक अनिल कुमार वाजपेयी की जगह पूर्व कांग्रेस मंत्री अरविंदर सिंह लवली को मैदान में उतारा है.
आम आदमी पार्टी ने जिन 13 सीटों पर बहुत कम अंतर से 2020 में जीत दर्ज की थी, उसमें शाहदरा,शकूरबस्ती, कृष्णा नगर, आरके पुरम, कस्तूरबा नगर, शालीमार बाग,बिजवासन, नजफगढ़, छतरपुर,त्रिनगर, किराड़ी और आदर्श नगर सीट है. पार्टी ने उन 13 विधायक में 9 को बदल कर नए चेहरे या फिर दूसरे दल से आए हुए मजबूत नेताओं को उतारने का फैसला किया है. वहीं केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर को दरकिनार करने के मकसद से अपने जीते हुए विधायकों का टिकट काटकर नए नवेले चेहरो पर दांव खेला है.
आखिर क्यों मायने रखता है
2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत जीत के बावजूद आम आदमी पार्टी को इस बार ! विधानसभा चुनावों में बनते जा रहे करीबी मुकाबलें से सियासी टेंशन लाजमी है. देखे तो 2015 की तुलना में 2020 के चुनाव में अधिक प्रत्याशियों ने 5 फीसदी से कम के अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थी. 2020 चुनाव में 17 फीसदी सीटों पर हार-जीत का अंतर केवल दस हजार से कम वोटों का ही था. ज्यादा वोटों से जीत का अंतर निर्णायक जीत का संकेत देता है
जबकि कम अंतर से जीतने वाली सीटों के संकेत कड़ी टक्कर की संभावना को जताता है. 2013, 2015 से 2020 तक जीत के अंतर में बदलाव हुआ है, यहां तक कि AAP की शानदार जीत के बावजूद 2025 के चुनावों में पार्टी के लिए एक चेतावनी के रूप में टेंशन बढ़ा रही है.