Chhath Mahaparv 2025: लोकआस्था के पर्व में ‘खरना’ का विशेष महत्व, जानिए पूजन विधि और प्रसाद की परंपरा

Chhath Mahaparv 2025: ‘खरना’ से शुरू होती है निर्जला तपस्या की राह, छठ पर्व पर जानिए इसकी आध्यात्मिक महत्ता

Chhath Mahaparv 2025लोकआस्था का सबसे पवित्र पर्व छठ पूजा— पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह चार दिवसीय पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मसंयम, शुद्धता और विश्वास की एक दिव्य साधना है। रविवार, 26 अक्टूबर 2025 को इस महापर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ के रूप में मनाया जाएगा, जो व्रती के लिए सबसे कठिन और पवित्र चरणों में से एक माना जाता है। इस दिन की परंपराएँ न केवल शरीर और मन की शुद्धि का संदेश देती हैं, बल्कि सूर्यदेव और छठी मैया की कृपा प्राप्त करने का मार्ग भी खोलती हैं। आइए जानते हैं, छठ पूजा के इस विशेष दिन ‘खरना’ का धार्मिक महत्व, पूजन विधि और प्रसाद की परंपरा क्या है।

आत्मसंयम और आस्था का प्रतीक ‘खरना’/Chhath Mahaparv 2025

छठ पूजा का दूसरा दिन ‘खरना’ (Kharna) व्रती के लिए आत्मिक शुद्धि और पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। इस दिन उपवास करने वाले श्रद्धालु सुबह स्नान कर पवित्र संकल्प लेते हैं और पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। सूर्यास्त के समय वे पूजा-अर्चना कर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे ‘खरना का प्रसाद’ (Kharna Ka Prasad) कहा जाता है। यह प्रसाद व्रती के लिए न केवल भोजन का रूप होता है, बल्कि उनके भीतर ऊर्जा, विश्वास और शुद्धता का संचार करता है। खरना के बाद ही 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास आरंभ होता है, जिसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन मन, वचन और कर्म की शुद्धि से व्रती सूर्यदेव और छठी मैया की असीम कृपा प्राप्त करता है। खरना वास्तव में आत्मसंयम, आस्था और तप की अद्भुत साधना का आरंभिक चरण है।

प्रसाद में झलकती सादगी और पवित्रता

खरना (Kharna) का प्रसाद छठ पर्व की सबसे विशिष्ट परंपराओं में से एक है। इस दिन व्रती विशेष रूप से गुड़ की खीर बनाते हैं, जो दूध, चावल और गुड़ से तैयार की जाती है। इसके साथ गेहूं के आटे की रोटी या पूरी भी बनाई जाती है। यह प्रसाद पहले सूर्यदेव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है, फिर व्रती स्वयं इसका सेवन करते हैं। यह परंपरा न केवल पवित्रता का प्रतीक है, बल्कि समानता और सामूहिकता का भी संदेश देती है। घर के सभी सदस्य और आस-पड़ोस के लोग मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिससे सामाजिक एकता और सौहार्द का भाव प्रकट होता है। प्रसाद की सादगी में छिपा संदेश यही है कि भक्ति का अर्थ विलासिता नहीं, बल्कि सच्चे मन से की गई पूजा और निष्ठा से जुड़ा होता है।

पूजा विधि: सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना

खरना की पूजा संध्या काल में विशेष विधि से की जाती है। व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और मन में यह संकल्प लेते हैं कि वे पूरे दिन निर्जला व्रत रहेंगे। दिनभर घर और पूजा स्थल को स्वच्छ रखा जाता है। सूर्यास्त के समय प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसमें गुड़ की खीर, गेहूं की रोटी और केले का भोग शामिल होता है। पूजा के समय सूर्यदेव और छठी मैया (Chhathi Maiya) की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित कर आराधना की जाती है। पहले सूर्यदेव को जल और प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसके बाद छठी मैया की पूजा की जाती है। इस विधि के माध्यम से व्रती सूर्यदेव से जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। पूजा संपन्न होने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिससे अगले दिन का कठिन निर्जला व्रत प्रारंभ होता है।

लोक परंपरा से जुड़ा सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश

छठ पूजा (Chhath Puja) केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोक आस्था की गहरी जड़ें लिए एक सामाजिक उत्सव भी है। ‘खरना’ (Kharna) के दिन परिवार और समुदाय के लोग मिलकर व्रती के साथ इस पूजन का हिस्सा बनते हैं। यह एकता, सामूहिकता और आध्यात्मिकता का संगम है। व्रती के तप और संयम से पूरा वातावरण पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। परंपरागत रूप से माना जाता है कि इस दिन का हर कर्म सूर्यदेव की आराधना और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है। आधुनिक समय में भी यह पर्व अपने मूल्यों के साथ समाज को संयम, सादगी और श्रद्धा की राह दिखाता है। खरना के इस अनुष्ठान के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर की नकारात्मकता को त्याग कर शुद्धता और आत्मिक शांति की ओर बढ़ता है, जो छठ पूजा के वास्तविक संदेश को प्रकट करता है।

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